मंगलवार, 1 अगस्त 2023

जानें क्या है Chota Char Dham का महत्व

अगस्त 01, 2023 0
उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री को “छोटा चार धाम” कहा जाता है। इन चारों धार्मिक स्थलों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। यह चार धाम एक ही राज्य में होने के कारण भक्तों के लिए सुगम माने जाते हैं। माता दुर्गा और शिवजी से संबद्ध रखने वाले पर इन धार्मिक स्थलों को हिंदू श्रद्धालु पवित्र मानते हैं।


मान्यता है कि चार धामों की पवित्र यात्रा व दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है। साथ ही मनुष्य जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। छोटा चार धाम की यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) व गंगोत्री (गंगा) के दर्शन करते है तथा पवित्र जल लेकर केदारेश्वर का अभिषेक करते हैं।


यमुनोत्री (Yamunotri)

यमुनोत्री उत्तराखंड के बेहद प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह छोटा चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। मान्यता है कि यमुना सूर्य की पुत्री और यम उनका पुत्र है। कहा जाता है कि यमुना में स्नान किए लोगों के साथ यमराज सख्ती नहीं बरतते। यमराज को मौत का देवता माना जाता है। यमुना में स्नान करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
मंदिर के पास गरम पानी के कई सोते है, जिसमें सूर्य कुंड अत्यधिक प्रसिद्ध है। श्रद्धालु इस कुंड के गरम पानी में आलू व चावल पका कर प्रसाद के तौर पर घर ले जाते हैं।

गंगोत्री (Gangotri)

मान्यता है कि पवित्र गंगा नदी सर्वप्रथम गंगोत्री में ही अवतरित हुई थीं। गंगोत्री को गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है। केदारखंड की तीर्थ यात्रा में यमुनोत्री की यात्रा के बाद गंगोत्री की यात्रा का विधान है। यहाँ गंगा मंदिर (शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रतिमा), सूर्यकुण्ड, विष्णुकुंड, ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल हैं। गंगोत्री को मोक्षदायिनी भूमि माना जाता है। गंगा सप्तमी, अक्षय तृतीया और यम तृतीया के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

केदारनाथ (Kedarnath)

यमुनोत्री के पवित्र जल से केदारनाथ के ज्योतिर्लिंगों का अभिषेक करना शुभ माना जाता है। वायुपुराण के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए भगवान नारायण (विष्णु) बद्रीनाथ में अवतरित हुए। बद्रीनाथ में पहले भगवान शिव का वास था, किन्तु जगतपालक नारायण के लिए शिव बद्रीनाथ छोड़ कर केदारनाथ चले गए। भगवान शिव द्वारा किए त्याग के कारण केदारनाथ को अहम प्राथमिकता दी जाती है।

केदारनाथ में भगवान शिव के साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्णु और लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी की जाती है।

बद्रीनाथ (Badrinath)

गंगा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ तीर्थस्थान समुद्र से 3050 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में है, जो नर और नारायण पर्वत (अलकनंदा नदी के बाएँ तट पर स्थित) के बीच स्थित है। बद्रीनाथ का नामकरण यहाँ की जंगली बेरी बद्री के नाम पर किया गया है। बद्रीनाथ मंदिर में अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक कहे जाने वाली अखंड-ज्योत हमेशा जलती रहती है।
चार धाम यात्रा को हिन्दूओं के सबसे पावन यात्रा माना जाता है। इसकी तुलना मुस्लिमों की हज़ यात्रा से की जाती है। मान्यता है कि एक हिन्दू को जीवन में एक बार चार धाम की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। यह चार धाम भारत के चार दिशाओं में फैले हैं यानि बद्रीनाथ (उत्तराखंड), रामेश्वरम् (तमिलनाडू), द्वारका (गुजरात) एवं जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा)। यह चार धाम जगतपालक श्री हरि विष्णु से संबंधित हैं।

चार धाम का महत्व (Importance of Char Dham)

भारत के चार धामों का संबंध भगवान श्री हरि विष्णुजी से हैं। विष्णुजी त्रिदेवों में एक हैं और उन्हें जगतपालक माना जाता है। मान्यता है कि चार धाम की यात्रा से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। यह तीर्थ मनुष्य के सभी पापों की क्षीण कर देते हैं और मनुष्य निष्पाप हो मोक्ष को प्राप्त कर पाता है। चार धाम की यात्रा श्रद्धालुओं के मन में आस्था का अद्भुत संचार करते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु चार धाम की यात्रा करते हैं। अक्षय तृतीया, माघी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और अमावस्या आदि पावन दिनों में यहां अत्यधिक भीड़ उमड़ती है।  आदि शंकराचार्य ने धार्मिक शिक्षा हेतु चार आश्रम की स्थापना की जिनका मुख्यालय द्वारका (पश्चिम), जगन्नाथ पुरी (पूर्व), श्रृंगेरी शारदा पीठ (दक्षिण) और बद्रीकाश्रम (उत्तर) में स्थित है।

बद्रीनाथ (Badrinath)

गंगा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ तीर्थस्थल हिमालय में है, जो नर और नारायण पर्वत (अलकनंदा नदी के बाएँ तट पर स्थित) के बीच स्थित है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के अवतार में इस स्थान पर तपस्या की थी। इस पुण्यस्थल का नामकरण यहाँ की जंगली बेरी ‘बद्री’ तथा भगवान विष्णु का अलकनंदा नदी (गंगा का स्वरूप) पर निवास के कारण किया गया है। बद्रीनाथ मंदिर में अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक कहे जाने वाली अखंड-ज्योत हमेशा जलती रहती है।

रामेश्वर (Rameshwar)
दक्षिण भारत में रामेश्वर को बेहद पवित्र माना जाता है। भगवान शिव जी और श्री राम को समर्पित रामेश्वर मंदिर तमिलनाडु राज्य में स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान राम ने कराया था। यह वही जगह मानी जाती है जहां श्री राम ने शिवलिंग रूप में भगवान शिव की पूजा की थी। यहां स्थित शिवलिंग, बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसी पुण्य स्थल पर भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए पत्थरों का पुल तैयार करवाया था।

द्वारका (Dwarka)

कहा जाता है कि समुद्र तट पर स्थित द्वारका को भगवान कृष्ण ने स्वंय बसाया था। महाभारत में भी द्वारका पुरी का वर्णन है। कई लोग मानते हैं कि द्वारका उत्तर प्रदेश में कहीं स्थित है लेकिन इतिहास के अध्ययन से पता चला कि द्वारका समुद्र के तट पर बसी थी। गुजरात के तट पर बसी द्वारका पुरी में लोग श्रीकृष्ण का स्मरण कर आते हैं और भक्ति-रस का आनंद लेते हैं।
द्वारका एक धार्मिक स्थल होने के साथ यह एक रहस्यमय स्थल भी माना जाता है जो भगवान कृष्ण की मृत्यु उपरांत समुद्र में समा गया था।

जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)

भगवान कृष्ण को समर्पित जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा में स्थित हैं। इसका निर्माण कलिंग राजा अनंतवर्मन् चोडगंग देव तथा अनंग भीम देव ने कराया था। यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है। इसमें भगवान कृष्ण, बलभद्र (भगवान कृष्ण के भाई) व सुभद्रा (भगवान कृष्ण की बहन) बिना भुजा के विराजमान हैं। उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर विशेष रूप से वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा है लेकिन यहाँ सभी संप्रदाय के श्रद्धालु आते हैं। “रथ यात्रा” के दौरान यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की सुसज्जित प्रतिमाओं को रथ में स्थापित कर सम्पूर्ण नगर की यात्रा कराई जाती है।


मंगलवार, 25 जुलाई 2023

सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् Sartha shivatandav astotram पढ़ने होगा ये लाभ

जुलाई 25, 2023 0


Sarthashivatandavastotram ||

जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-
-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि .
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २..

जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ को प्रक्षालित क होती हैं, जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें

जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शिश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अंनुराग प्रतिक्षण बढता रहे।

धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे .
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३..

जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४..

जो पर्वतराजसुता(पार्वती जी) केअ विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनन्दित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आन्दित रहे।

मैं उन शिवजी की भक्ति में आन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों की के आधार एवं रक्षक हैं, जिनके जाटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश पीले वर्ण प्रभा-समुहरूपकेसर के कातिं से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं और जो गजचर्म से विभुषित हैं।

सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५..

जिन शिव जी का चरण इन्द्र-विष्णु आदि देवताओं के मस्तक के पुष्पों के धूल से रंजित हैं (जिन्हे देवतागण अपने सर के पुष्प अर्पन करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः .. ६..

जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभि देवों द्वारा पुज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्दी प्रदान करें।
कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल
द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम … ७..

जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर है ( यहाँ पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।
नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८..

जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभि प्रकार की सम्पनता प्रदान करें।
प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-
-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..

जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो6 के काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यू को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ
अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..

जो कल्यानमय, अविनाशि, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।
जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..

अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढी हूई प्रचंण अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।
दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः .
तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..

कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टूकडों, शत्रू एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर सामान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूँ।
कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः
शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..


कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करता हुआ, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।
इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४..

इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो, परंगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे .
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५..

प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है।


भगवान Shankar का साक्षात रूप Maharaj Dattatreya Ji

जुलाई 25, 2023 0





महाराज दत्तात्रेय एक हिंदू देवता हैं, जो तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार हैं. वे एक ऋषि, योगी और दार्शनिक भी हैं, जो ज्ञान और आध्यात्मिकता के लिए जाने जाते हैं. महाराज दत्तात्रेय को समस्त देवताओं का पिता माना जाता है, और वे सभी धर्मों और पंथों के लोगों द्वारा पूजे जाते हैं.

महाराज दत्तात्रेय का जन्म एक ऋषि और एक क्षत्रिय महिला के घर में हुआ था. वे बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और धार्मिक थे, और उन्होंने जल्द ही सभी वेद और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया. वे एक महान योगी और दार्शनिक भी थे, और उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने के लिए इस्तेमाल किया.

महाराज दत्तात्रेय ने अपने जीवन में कई चमत्कार किए हैं. उन्होंने लोगों को रोगों से मुक्त किया है, उन्हें धन और समृद्धि प्रदान की है, और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान दिया है. वे एक महान करुणावान और दयालु देवता थे, और वे हमेशा लोगों की मदद के लिए तैयार रहते थे.

महाराज दत्तात्रेय को समस्त देवताओं का पिता माना जाता है, क्योंकि वे सभी देवताओं के ज्ञान और आध्यात्मिकता के स्रोत हैं. वे सभी धर्मों और पंथों के लोगों द्वारा पूजे जाते हैं, क्योंकि वे सभी के लिए एक समान मार्गदर्शन प्रदान करते हैं.

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महाराज दत्तात्रेय का जन्मदिन हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है. इस दिन, उनके मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, और उनके भक्त उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

महाराज दत्तात्रेय एक महान देवता हैं, जो ज्ञान, आध्यात्मिकता और करुणा के प्रतीक हैं. वे सभी के लिए एक आदर्श हैं, और वे सभी को अपने जीवन में सफलता और सुख प्राप्त करने में मदद करते हैं.

यहां महाराज दत्तात्रेय के कुछ प्रमुख गुणों का उल्लेख किया गया है:


  • ज्ञान: महाराज दत्तात्रेय सभी वेद और शास्त्रों के ज्ञाता थे. वे एक महान विद्वान और दार्शनिक थे, और उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने के लिए इस्तेमाल किया.

  • आध्यात्मिकता: महाराज दत्तात्रेय एक महान योगी और दार्शनिक थे. उन्होंने अपने ज्ञान को लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने के लिए इस्तेमाल किया.

  • करुणा: महाराज दत्तात्रेय एक महान करुणावान और दयालु देवता थे. वे हमेशा लोगों की मदद के लिए तैयार रहते थे.

  • समता: महाराज दत्तात्रेय सभी धर्मों और पंथों के लोगों के लिए एक समान मार्गदर्शन प्रदान करते थे. वे सभी के लिए एक समान आदर्श थे.

महाराज दत्तात्रेय एक महान देवता हैं, जो सभी के लिए एक आदर्श हैं. वे हमें ज्ञान, आध्यात्मिकता और करुणा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं.



शनिवार, 22 जुलाई 2023

अच्युतम केशवं Krishan Damodram, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||

जुलाई 22, 2023 0


अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान आते नहीं, तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान खाते नहीं, बेर शबरी के जैसे खिलते नहीं |

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान सोते नहीं, माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान नाचते नहीं, तुम गोपी के जैसे नचाते नहीं |

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहता है भगवान नचाते नहीं, गोपियों की तरह तुम नाचते नहीं |

अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||


Achutyam Keshvam, रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् !!

जुलाई 22, 2023 0

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् !!


अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्|
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे||१||

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्|
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे||२||

विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे रुक्मिणीरागीणे जानकीजानये|
वल्लवीवल्लाभायार्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ||३||

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे|
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक||४||

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः |
लक्ष्मणेनान्वितो वानरै: सेवितो-sगस्त्यसम्पुजितो राघवः पातु माम् ||५||

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः |
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो बालगोपालकः पातु मां सर्वदा||६||

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वासस¬ं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लस्द्विग्¬रहम्|
वन्यया मालया शोभितोर:स्थलं लोहिताङघ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे||७||

कुञ्चितै: कुन्तलैभ्रार्जमानाननं रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयो|
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ||८||

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्|
वृत्ततः सुन्दरं कर्तविश्वम्भर-स्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम्||९||

लकवा Paralyze या पक्षाघात से कैसे निजात पायें

जुलाई 22, 2023 0

लकवा क्या होता है : 

शरीर के एक तरफ़ा अंगो में शून्यता आना या अंगो का काम करना बंद हो जाना लकवा या पक्षाघात कहलाता है! आजकल यह रोग बड़ी तेजी से अपनी पकड़ बना रहा है! यहाँ मैं कुछ उपचार बता रहा हूँ जो की बहुत ही आसन है और आप घर पर ही इन उपायों को अपना कर लकवा ग्रस्त प्राणी की मदद कर सकते हैं!

लकवा उपचार हेतू कुछ टिप्स :

1. प्याज़ खाने से लकवे में फायदा होता है!

२. करेले की सब्जी खाने और उसका रस पिने से भी लकवे में आराम मिलता है !

३. लहसुन और मक्खन को साथ में खाने से लकवा ठीक होने लगता है !

४. उड़द  और सोंठ को मिलकर हलकी आंच पर पकाकर देने से लकवा ठीक होने लगता है ! 

इनमें से कोई भी एक उपचार करने से लकवा ठीक होने लगता है पर समय थोडा अधिक लगता है आप पूर्ण विश्वाश के साथ करैं तभी फायदा होगा !
 


शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

Sawarg और Narak नहीं इस व्रत से मिलता है विष्णु लोक

जुलाई 21, 2023 0





उत्त्पन्ना एकाद्शी
यह एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी के दिन मनाई जाती है। इस दिन व्रत करने पर जीवन में सुख शांति मिलती है। मृत्यु के बाद विष्णु लोक में वास प्राप्त होता है। इस दिन परोपकारिणी देवी का जन्म हुआ है जो की प्रभु के दिव्या शरीर से उत्पन्न हुई हैं इसलिए इस दिन व्रत करके भगवद् भजन करके हरी का नाम जपते और कीर्तनादि करने का महत्व है।

व्रत की कथा
सतयुग में मुरु नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन से पदस्थ कर दिया। देवता लोग दुःखी होकर भगवान शिव की शरण में पहुंचे। शिवजी ने विष्णु जी सहायता करने को कहा। विष्णु जी ने सारे दानवों का संहार कर दिया लेकिन मुर दैत्य नहीं मरा। उसे वरदान था इसलिए वह अजेय था।

युद्ध के बाद विष्णु जी बद्रीनाथ में आराम करने लगे। मुर ने भी पीछा न छोड़ा। मुर ने वहां जाकर विष्णु जी को मारना चाहा। तभी विष्णु जी के शरीर से एक कन्या का जन्म हुआ और उसने मुर का अंत कर दिया।


उस कन्या से विष्णु जी ने कहा, 'तुम मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हो, मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारी आराधना करने पर माया जाल और मोहवश मुझे भूलने वाले प्राणी मेरी कृपा दृष्टि में रहेंगे।' उन्हें अंत में विष्णु लोक प्राप्त होगा।