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उत्त्पन्ना एकाद्शी
यह एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी के दिन मनाई जाती है। इस दिन व्रत करने पर जीवन में सुख शांति मिलती है। मृत्यु के बाद विष्णु लोक में वास प्राप्त होता है। इस दिन परोपकारिणी देवी का जन्म हुआ है जो की प्रभु के दिव्या शरीर से उत्पन्न हुई हैं इसलिए इस दिन व्रत करके भगवद् भजन करके हरी का नाम जपते और कीर्तनादि करने का महत्व है।
व्रत की कथा
सतयुग में मुरु नामक दैत्य ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्र का सिंहासन से पदस्थ कर दिया। देवता लोग दुःखी होकर भगवान शिव की शरण में पहुंचे। शिवजी ने विष्णु जी सहायता करने को कहा। विष्णु जी ने सारे दानवों का संहार कर दिया लेकिन मुर दैत्य नहीं मरा। उसे वरदान था इसलिए वह अजेय था।
युद्ध के बाद विष्णु जी बद्रीनाथ में आराम करने लगे। मुर ने भी पीछा न छोड़ा। मुर ने वहां जाकर विष्णु जी को मारना चाहा। तभी विष्णु जी के शरीर से एक कन्या का जन्म हुआ और उसने मुर का अंत कर दिया।
उस कन्या से विष्णु जी ने कहा, 'तुम मेरे शरीर से उत्पन्न हुई हो, मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारी आराधना करने पर माया जाल और मोहवश मुझे भूलने वाले प्राणी मेरी कृपा दृष्टि में रहेंगे।' उन्हें अंत में विष्णु लोक प्राप्त होगा।
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