मंगलवार, 1 अगस्त 2023

जानें क्या है Chota Char Dham का महत्व

उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री को “छोटा चार धाम” कहा जाता है। इन चारों धार्मिक स्थलों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। यह चार धाम एक ही राज्य में होने के कारण भक्तों के लिए सुगम माने जाते हैं। माता दुर्गा और शिवजी से संबद्ध रखने वाले पर इन धार्मिक स्थलों को हिंदू श्रद्धालु पवित्र मानते हैं।


मान्यता है कि चार धामों की पवित्र यात्रा व दर्शन करने से सभी पापों का नाश होता है। साथ ही मनुष्य जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। छोटा चार धाम की यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) व गंगोत्री (गंगा) के दर्शन करते है तथा पवित्र जल लेकर केदारेश्वर का अभिषेक करते हैं।


यमुनोत्री (Yamunotri)

यमुनोत्री उत्तराखंड के बेहद प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह छोटा चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। मान्यता है कि यमुना सूर्य की पुत्री और यम उनका पुत्र है। कहा जाता है कि यमुना में स्नान किए लोगों के साथ यमराज सख्ती नहीं बरतते। यमराज को मौत का देवता माना जाता है। यमुना में स्नान करने से मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
मंदिर के पास गरम पानी के कई सोते है, जिसमें सूर्य कुंड अत्यधिक प्रसिद्ध है। श्रद्धालु इस कुंड के गरम पानी में आलू व चावल पका कर प्रसाद के तौर पर घर ले जाते हैं।

गंगोत्री (Gangotri)

मान्यता है कि पवित्र गंगा नदी सर्वप्रथम गंगोत्री में ही अवतरित हुई थीं। गंगोत्री को गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है। केदारखंड की तीर्थ यात्रा में यमुनोत्री की यात्रा के बाद गंगोत्री की यात्रा का विधान है। यहाँ गंगा मंदिर (शंकराचार्य द्वारा स्थापित प्रतिमा), सूर्यकुण्ड, विष्णुकुंड, ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल हैं। गंगोत्री को मोक्षदायिनी भूमि माना जाता है। गंगा सप्तमी, अक्षय तृतीया और यम तृतीया के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

केदारनाथ (Kedarnath)

यमुनोत्री के पवित्र जल से केदारनाथ के ज्योतिर्लिंगों का अभिषेक करना शुभ माना जाता है। वायुपुराण के अनुसार मानव जाति के कल्याण के लिए भगवान नारायण (विष्णु) बद्रीनाथ में अवतरित हुए। बद्रीनाथ में पहले भगवान शिव का वास था, किन्तु जगतपालक नारायण के लिए शिव बद्रीनाथ छोड़ कर केदारनाथ चले गए। भगवान शिव द्वारा किए त्याग के कारण केदारनाथ को अहम प्राथमिकता दी जाती है।

केदारनाथ में भगवान शिव के साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्णु और लक्ष्मी, कृष्ण, कुंती, द्रौपदी, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी की जाती है।

बद्रीनाथ (Badrinath)

गंगा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ तीर्थस्थान समुद्र से 3050 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में है, जो नर और नारायण पर्वत (अलकनंदा नदी के बाएँ तट पर स्थित) के बीच स्थित है। बद्रीनाथ का नामकरण यहाँ की जंगली बेरी बद्री के नाम पर किया गया है। बद्रीनाथ मंदिर में अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक कहे जाने वाली अखंड-ज्योत हमेशा जलती रहती है।
चार धाम यात्रा को हिन्दूओं के सबसे पावन यात्रा माना जाता है। इसकी तुलना मुस्लिमों की हज़ यात्रा से की जाती है। मान्यता है कि एक हिन्दू को जीवन में एक बार चार धाम की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। यह चार धाम भारत के चार दिशाओं में फैले हैं यानि बद्रीनाथ (उत्तराखंड), रामेश्वरम् (तमिलनाडू), द्वारका (गुजरात) एवं जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा)। यह चार धाम जगतपालक श्री हरि विष्णु से संबंधित हैं।

चार धाम का महत्व (Importance of Char Dham)

भारत के चार धामों का संबंध भगवान श्री हरि विष्णुजी से हैं। विष्णुजी त्रिदेवों में एक हैं और उन्हें जगतपालक माना जाता है। मान्यता है कि चार धाम की यात्रा से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। यह तीर्थ मनुष्य के सभी पापों की क्षीण कर देते हैं और मनुष्य निष्पाप हो मोक्ष को प्राप्त कर पाता है। चार धाम की यात्रा श्रद्धालुओं के मन में आस्था का अद्भुत संचार करते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु चार धाम की यात्रा करते हैं। अक्षय तृतीया, माघी पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और अमावस्या आदि पावन दिनों में यहां अत्यधिक भीड़ उमड़ती है।  आदि शंकराचार्य ने धार्मिक शिक्षा हेतु चार आश्रम की स्थापना की जिनका मुख्यालय द्वारका (पश्चिम), जगन्नाथ पुरी (पूर्व), श्रृंगेरी शारदा पीठ (दक्षिण) और बद्रीकाश्रम (उत्तर) में स्थित है।

बद्रीनाथ (Badrinath)

गंगा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ तीर्थस्थल हिमालय में है, जो नर और नारायण पर्वत (अलकनंदा नदी के बाएँ तट पर स्थित) के बीच स्थित है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के अवतार में इस स्थान पर तपस्या की थी। इस पुण्यस्थल का नामकरण यहाँ की जंगली बेरी ‘बद्री’ तथा भगवान विष्णु का अलकनंदा नदी (गंगा का स्वरूप) पर निवास के कारण किया गया है। बद्रीनाथ मंदिर में अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक कहे जाने वाली अखंड-ज्योत हमेशा जलती रहती है।

रामेश्वर (Rameshwar)
दक्षिण भारत में रामेश्वर को बेहद पवित्र माना जाता है। भगवान शिव जी और श्री राम को समर्पित रामेश्वर मंदिर तमिलनाडु राज्य में स्थित है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान राम ने कराया था। यह वही जगह मानी जाती है जहां श्री राम ने शिवलिंग रूप में भगवान शिव की पूजा की थी। यहां स्थित शिवलिंग, बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसी पुण्य स्थल पर भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए पत्थरों का पुल तैयार करवाया था।

द्वारका (Dwarka)

कहा जाता है कि समुद्र तट पर स्थित द्वारका को भगवान कृष्ण ने स्वंय बसाया था। महाभारत में भी द्वारका पुरी का वर्णन है। कई लोग मानते हैं कि द्वारका उत्तर प्रदेश में कहीं स्थित है लेकिन इतिहास के अध्ययन से पता चला कि द्वारका समुद्र के तट पर बसी थी। गुजरात के तट पर बसी द्वारका पुरी में लोग श्रीकृष्ण का स्मरण कर आते हैं और भक्ति-रस का आनंद लेते हैं।
द्वारका एक धार्मिक स्थल होने के साथ यह एक रहस्यमय स्थल भी माना जाता है जो भगवान कृष्ण की मृत्यु उपरांत समुद्र में समा गया था।

जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple)

भगवान कृष्ण को समर्पित जगन्नाथ मंदिर उड़ीसा में स्थित हैं। इसका निर्माण कलिंग राजा अनंतवर्मन् चोडगंग देव तथा अनंग भीम देव ने कराया था। यह मंदिर लगभग 1000 साल पुराना है। इसमें भगवान कृष्ण, बलभद्र (भगवान कृष्ण के भाई) व सुभद्रा (भगवान कृष्ण की बहन) बिना भुजा के विराजमान हैं। उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर विशेष रूप से वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा है लेकिन यहाँ सभी संप्रदाय के श्रद्धालु आते हैं। “रथ यात्रा” के दौरान यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की सुसज्जित प्रतिमाओं को रथ में स्थापित कर सम्पूर्ण नगर की यात्रा कराई जाती है।


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