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बुधवार, 14 दिसंबर 2022

Maa AnnaPurna देवी की पूजा करने से घर में नहीं होती धन-धान्य की कमी

दिसंबर 14, 2022 0

 मां अन्नपूर्णा देवी की पूजा करने से घर में नहीं होती धन-धान्य की कमी | #annpurnajyanti






नमस्कार मैं दान सिंह बिष्ट आपका स्वागत करता हूँ आपके अपने यूट्यूब चैनल उत्तराखंड ऑनलाइन में आज अन्नपूर्णा जयंती है और अन्नपूर्णा जयंती के महत्व के बारे में बात करेंगे अन्नपूर्णा जयंती कब मनाई जाती है और क्या अह कारण है इसको मनाने का के पीछे उन सभी के बारे में आज बात करेंगे तो माता अन्नपूर्णा जयंती की आप सभी को पहले तो बहुत सारी ढेर सारी शुभकामनाएं हार्दिक बधाइयाँ बात करते हैं माता अन्नपूर्णा जयंती कब मनाई जाती है? तो मंगसीर मास की पूर्णिमा के दिन ये मनाई जाती है मंगसीर मास की जो पूर्णिमा आती है उस दिन इसका अह व्रत भी रखते हैं बहुत सारे लोग और माता उनकी पूजा भी करते हैं जो व्रत नहीं रखते वो केवल पूजा ही करते हैं और जो व्रत रखते हैं वो अह पूरा व्रत रखने रखते हैं इसका और क्या कहते हैं माता अन्नपूर्णा की अह सांझ टाइम में पूजा करते हैं। जैसा कि एक नॉर्मल व्रत रखा जाता है उसी तरह का ये व्रत होता है मगर ये व्रत कहाँ पे अह इसकी होती है मैं आपको बताऊंगा तो मंदिर में तो आप हरदम ही करते हैं पूजा तो मैं बताऊंगा कि कहाँ पे इसकी पूजा की जाएगी अब जो अह श्रद्धालु होते हैं वो अह देवी की पूजा तो करते ही हैं और उनके घर में धन धान्य की कभी कमी नहीं होती है। आप देखते होंगे कि कभी हम बहुत सारा, पूरा अपने महीने के राशन तो ले आते हैं मगर कभी-कभार वो बहुत जल्दी-जल्दी ऐसा लगता है बहुत जल्दी-जल्दी खत्म हो रहा है। तो वही चीज नहीं होने देती माता और आपके धन-धान को भरपूर रखती है। और आप कभी शब्द को नहीं कहेंगे क्योंकि बहुत लोगों से आपने सुना होगा कि अभी तो लाए थे, अभी खत्म हो गया राशन अभी लाए थे, अभी खत्म हो गई, ये चीज लाए थे, खत्म हो गए, तो वो चीज आपको उस चीज की परेशान नहीं होने देगी और अगर धन की थोड़ी कमी भी है तब भी आपके पास अह साधन रहेगा कि आपको किसी से मांगना नहीं पड़ेगा धन की बात करें तो तो इस तरह का जो है माँ अन्नपूर्णा की उस तरह की जो कृपा है एक वो बनी रहती है उनके श्रद्धालुओं पे अब सबसे बड़ी बात है कि इनकी पूजा कहाँ पे करें, मंदिर में इनकी पूजा नहीं होती है, मंदिर में जो अह मंदिर है वहाँ पे आप धूपबत्ती करके रख लें उसके बाद सबसे पहले नहा-धो के आप रसोई में आ जाएं और रसोई में आने के बाद अह गंगाजल से छिड़काव करें, वहाँ पे अच्छा साफ-सुथरा माहौल आप बना लेंगे उसके बाद जो भी पूजा सामग्री है, धूप में जो भी आप आपकी इच्छा के अनुसार जो भी आप करना चाहते हैं। तो अह शहरों में तो गैस वगैरह है तो यहाँ पे चूल्हे के ऊपर नहीं हो सकता हालांकि इसका चूल्हे के ऊपर ही धूप, दीप, भांति, जला के फल, फूल जो भी चढ़ाना चाहते हैं भोग, नव जो भी आप करना चाहते हैं, जिस हिसाब से पूजा वो कर सकते हैं, चूल्हे के ऊपर होता है ये। गाँव में चूल्हे बने होते हैं, मिट्टी के लेते हुए। उनमें ये बहुत अच्छी तरह और भली भांति अन्नपूर्णा माता की पूजा होती है, मगर शहरों में ये है थोड़ा अलग है इसका हिसाब शहरों में क्या करते हैं कि गैस है, सिलेंडर है, गैस पे खाना बनाते हैं लोग तो उसमें क्या होता है कि आप गैस में तो नहीं साइड में आप वो दिया वगैरह जला लें। हालांकि गैस में भी इतना वो होता है मगर ठीक है साइड में आप कर लें गैस के थोड़ा सेफ्टी के साथ और वहीं आप तिलक वगैरह कर सकते हैं गैस के ऊपर तिलक वगैरह करके फूल वगैरह चढ़ा दे वहाँ पे और दिए के पास भी थोड़ा फूल रख दे और फल फूल वगैरह भी आप उसमें रख सकते हैं पीली मिठाई हो वो भी आप अर्पित कर सकते हैं आज गुरुवार है आठ दिसंबर को और आज ही अन्नपूर्णा जयंती है तो अ मंगसीर मास की पूर्णिमा को ही अन्नपूर्ण जयंती मनाई जाती है इसी दिन ही माता ने अवतार लिया था अपना जीवों के भरण-पोषण के लिए इस संसार में तो ये इनकी पूजा विधि है बहुत बड़ी-बड़ी पूजा विधियाँ नहीं बताऊंगा आपको जो आप रोजाना करते हैं उस तरह से जो आपके मन में आता है ऐसा वो कर सकते हैं आप बाकी जो पौराणिक कथा है तो अह उस कथा में यही आता है वर्णन कि अन्न और जल का जब आकाल पड़ गया पृथ्वी पर तो संसार के प्राणियों में संकट पैदा हो गया था और लोग भूख की कमी से मरने लगे थे, अन्न की कमी से मरने लगे थे, त्रासदी इतनी बढ़ गई कि अह भगवान ब्रह्मा और विष्णु की आराधना की ओर लोगों ने बढ़ना चालू किया और अपनी समस्या उनको कही तो ब्रह्मा और विष्णु जी ने अह शिवजी को योग निद्रा से जगाया। और सम्पूर्ण समस्या से उनको अवगत कराया समस्या बहुत गंभीर थी इसको जानकर महादेव ने पृथ्वी अह का जो है निरीक्षण भी किया है और कि क्या किस तरह से स्थिति बनी हुई है तो उसी समय माता अह पार्वती ने अन्नपूर्णा देवी का रूप लिया और शिव जी ने अन्नपूर्णा देवी से चावल भिक्षा में मांगे थे और उन्हें भूख के पीड़ित लोगों के मध्य अह वितरित करा दिया प्रसाद स्वरूप तो एक तस्वीर भी है जिसमें अह भगवान शिव माता अन्नपूर्णा से भिक्षा ले रहे हैं, तो वो भिक्षा इसीलिए ली गई थी और इस दिन से अह पृथ्वी पर अन्नपूर्णा जयंती का जो है ये त्यौहार ये पर्व मनाया जाता है बता दें कि पूर्णिमा की जो तिथि है वो सात दिसंबर को आठ बजकर एक मिनट से शुरू हो गई है और अगले दिन आठ दिसंबर को नौ बजकर सैंतीस मिनट तक पूर्ण तिथि की समाप्ति हो गई.


मगर ऐसा है कि अन्नपूर्णा जयंती आज ही मनाई जा रही है और आज ही मनाई जाएगी अन्नपूर्णा जयंती जो है आज ही है.


हालांकि पूर्णिमा की तिथि सात दिसंबर को ही आरंभ हो गई थी आठ बजकर एक मिनट तो ये थी कुछ कथा जो कि बताई जाती है जो कि पौराणिक कथाएं हैं और आप माँ अन्नपूर्णा जयंती का व्रत रखा है या उनकी पाठ पूजा की है। तो यकीन रखिए कि धन्य दान की कमी होने वाली नहीं है। किसी भी तरह से, वैसे भी मैंने देखा है कि ये तो आज का दिन है कि माता अन्नपूर्णा जयंती है तो वैसे भी मगर माता किसी के लिए कभी कोई कसर नहीं छोड़ती। आप उनकी पूजा कर रहे हैं, नहीं कर रही है, ऐसा कुछ नहीं है कि जो पूजा ही कर रहा है वो इसी को ही मिल रहा है, ऐसा भी नहीं है, मगर ठीक है अगर कोई दिक्कतें आपके घर में आ रही हैं, कोई परेशानी, धन धान्य से संबंधित तो आप इस अह व्रत को रख सकते हैं। और माता अन्नपूर्णा के इस त्यौहार का लुप्त उठा सकते हैं, इस त्यौहार को अपने मन में बसाकर उनकी पूजा-भक्ति करके अपने लिए एक अभिष्ठ वरदान प्राप्त कर सकते हैं, माता अन्नपूर्णा से, तो सभी को माता अन्नपूर्णा जयंती की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ वीडियो को यहीं मैं विराम देना चाहूंगा।

Paush Month 2022 पौष माह में इन उपायों को करने से बढ़ेगा सौभाग्य

दिसंबर 14, 2022 0


Paush Month 2022 पौष माह में इन उपायों को करने से बढ़ेगा सौभाग्य

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पौष माह में इन उपायों को करने से बढ़ेगा सौभाग्य

आज बात करेंगे पौस महीने की और पौस महीना आरम्भ हो चुका है इसमें हमें क्या उपाय करने चाहिए तो हमारा भाग्य जो है उदय हो, हमारे जीवन की कठिनाइयों में हमें शक्ति मिले, उनसे लड़ने के लिए हमारे जीवन में पॉजिटिव एनर्जी का वास हो हमें अपने इष्ट देव का आशीर्वाद मिले, हमें अपने कुलदेवता से सिद्धि प्राप्त हो सके, हमें जो भी कार्य उसमें हमें सफलता मिले, बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद मिले. हमारा जीवन एक अच्छी राह पे चल सके. जीवन की जो कठिनाइयां आ रही हैं वो खत्म हो.




और उसमें हमें सफलता प्राप्त हो हम हर काम करने में जो हमारे उचित काम है उनको हम करने में सफलता अर्जित कर सकें तो अ चलिए बात करते हैं आज पोस महीने की पोस महीने का शुभारम्भ तो नौ दिसंबर शुक्रवार से ही हो चुका है आज दस दिसंबर है मैं आज ये वीडियो बना रहा हूँ तो चलिए बात करते हैं इसके महत्व की पौष क्यों महत्वपूर्ण है हमें इस महीने में क्या-क्या काम करने चाहिए कि हमारे जीवन में सुख समृद्धि का वास हो तो नौ दिसंबर शुक्रवार से ही ये महीना आरंभ हो चुका है पौष का और भगवान सूर्य देव से संबंधित है पौष महीना पौष महीने में सूर्य देव की पूजा का महत्व बढ़ा है। इस महीने में हम पिंडदान और श्राद्ध क्रम भी कर सकते हैं पितरों के लिए जो कि हमारे पितरों का आशीर्वाद हम पे बना रहे उनको जो है अगर वो किसी भी अह दुविधा में फंसे हैं या उनका उद्धार वहाँ नहीं हो पा रहा है तो पितृ अह पूजा करके उनको हमें अच्छे स्थान को दिलाने का एक दायित्व होता है जो कि पिंडदान या श्राद्ध कर्म से हम कर सकते हैं अपने पितरों के लिए अच्छा कर सकते हैं ताकि वो हमारे लिए अच्छा कर पाए महीने में सूर्य देव की जो गति होती है वो धीमी हो जाती है इसलिए खरमास भी लग जाता है.

खरमास के बारे में एक पूरी वीडियो बना के दूंगा. जिसमें खरमास के ही बारे में बात करेंगे क्योंकि पॉस महीने के अ जो अ पॉस महीना होता है उसी में ही ये खरमास भी लगता है तो अब बता देता हूँ आपको खरमास का प्रारम्भ कब होगा तो खरमास का प्रारम्भ सोलह दिसंबर से होगा. आज दस तारीख है दस दिसंबर है.

सोलह दिसम्बर से खरमास भी लग जाएगा.

तो महीने का जो अ महत्व है वो बहुत ही हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि हम अपने जीवन को सुचारू रूप से चला सकें हमें कठिनाइयों से लड़ सकें हमें शक्ति प्राप्त हो उन कठिनाइयों से जीवन में लड़ने के लिए तो हमें क्या-क्या आं काम करने चाहिए तो ये बता दें कि पोश महीना कब से कब तक है? तो कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ वैसे आठ दिसंबर से ही हो गया था तो आपको ये बता दें कि पौस की जो पूर्णिमा होती है पौस की पूर्णिमा के दिन ही पौस मास का समापन होता है.

तो पौस महीना मैंने बता दिया नौ दिसंबर दो हजार बाईस से आरम्भ हो चुका है और जो की सात जनवरी दो हजार तेईस तक रहेगा यानी शुक्रवार तक रहेगा शुक्रवार से शुक्रवार ये बहुत ही अच्छा संयोग बन पड़ा शुक्रवार से चालू हुआ शुक्रवार को ही इसका समापन होगा.

ये काफी अच्छा योग है और इसमें अह हम अपने लिए जो भी उपाय करेंगे वो अह सिद्ध होने वाले हैं उनमें रुकावट नहीं होगी। तो चलिए बात करते हैं कि क्या-क्या उपाय हमें करने चाहिए, बहुत बड़े-बड़े कोई ज्यादा बड़े उपाय नहीं है वही जो हम अपने जीवन में अपनाते हैं छोटे-मोटे जो उपाय हैं, छोटे-छोटे उपाय उन्हीं उपायों से हम अपना उद्धार कर सकते हैं। तो चलिए करते हैं. पौष माह में जो है भगवान सूर्यदेव महत्व है पौष माँ उन्हीं से आधारित, उन्हीं पे आधारित है सूर्य देव से ही तो सूर्य देव जो है इस टाइम पे धीमी गति में भी होते हैं.

सूर्य देव की आराधना हमें करनी चाहिए.

सूर्य देव की आराधना करने से उनको जल अर्पित करने से लाल फूलों का और लाल चंदन अक्षत डालकर उनको अर्पित किया जाने वाला जल जो है वो बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है और हमें बड़े महत्वपूर्ण और जो अद्भुत इसके लाभ मिलते हैं.

सूर्य मंत्र का अगर जाप अगर आप मंत्रों का जाप करना जानते हैं तो आप जाप कर सकते हैं.

और सूर्य मंत्र का जाप करना बहुत ही फायदेमंद होता है कार्य पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है सफलता में वृद्धि होती है आप ये जान लें इस चीज को तो उसके अलावा हमें पौष माह में प्रत्येक रविवार के दिन जो है व्रत अगर हम रखना चाहते हैं रख सकते हैं तो रख सकते हैं तो हम रखें क्योंकि सूर्य देव की पूजा सूर्य देव की जो पूजा होती है उसी दिन ही होती है रविवार को ही तो प्रत्येक रविवार को हम व्रत रख सकते हैं पौष माह की प्रत्येक रविवार को और नमक का अह प्रयोग इसमें वर्जित होता है मीठा भोजन हमें करना चाहिए सूर्यदेव प्रसन्न रहेंगे कुंडली में उनका प्रभाव बढ़ेगा और जो अह भाग्य में वृद्धि करने वाला होता है साथ ही पौष माह में सर्दी अ बढ़ जाती है गर्म कपड़े, कंबल, गुड़ इन चीजों का हमें दान करना चाहिए.

इस दान से हमें क्या होता है सुख-शांति में वृद्धि होती है.

इसके अलावा सूर्य देव को तिल और चावल की खिचड़ी का भोग भी लगा सकते हैं लाल और पीले वस्त्र पहन सकते हैं हम और सूर्य का प्रिय रंग माना जाता है ये अह लाल और पीला और इससे क्या होता है कि भाग्य जो है वो प्रबल होता है अब मांगलिक कार्य नहीं किए जाते क्योंकि खरमास भी मध्य पड़ता है जैसे सोलह तारीख से खरमास पड़ जाएगा लग जाएगा आरम्भ हो जाएगा खरमास तो खरमास भी पड़ता है पौष मास नहीं तो इसे खरमास का नाम भी दिया जाता है तो इस माह में नए-नए कार्य नहीं करते तो खरमास से पहले-पहले निपटा लेते हैं आजकल देखिए आप शादी ब्याह हो रहे हैं तो सोलह सोलह तारीख जैसे ही लग जाएगी उसके बाद फिर वही थोड़ा बहुत जब तक खरमास रहता है तब तक वो बंद हो जाते हैं, मांगलिक कार्य नहीं करते लोग तो मांगलिक कार्य वर्जित है, खरमास के टाइम पे ये सब है चीजें, इन चीजों का ध्यान रख के या इन चीजों को अह हम अपने जीवन में अपना के भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करके उनको लाल अह चंदन, अक्षत, लाल फूल अर्पित करके गुड़ भी उसमें डाल लें आप अगर जल अर्पित कर रहे हैं तो थोड़ा गुड़ की डालिए हल्की सी, छोटी सी तो उससे भी बहुत में वृद्धि मिलेगी मान प्रतिष्ठा सफलता आपको मिलेगी तो ये थे उपाय और ये था पौस माँ का वर्णन आपके सामने कब से चालू हुआ? कब इसका समापन होगा वो भी मैंने आपको बता दिया तो वीडियो अगर आपको अच्छी लगती है और चैनल पे अगर आप नए हैं तो आप चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लीजिएगा। 





कब है Rukmini Ashtami 2022: रुक्मिणी अष्टमी पूजा विधि और महत्व

दिसंबर 14, 2022 0

कब है Rukmini Ashtami 2022: रुक्मिणी अष्टमी पूजा विधि और महत्व



आज बात करते हैं रुक्मिणी अष्टमी के बारे में जो कि कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और इस दिन माता रुक्मिणी देवी के नाम से व्रत रखा जाता है, उनकी पूजा आराधना की जाती है, साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा का भी इसमें एक विधान है और उनकी पूजा भी की जाती है. द्वापर युग में माता रुक्मिणी का जन्म हुआ था और माँ लक्ष्मी का इनको अवतार कहते हैं, इस दिन जो व्रत रखता है तो माँ लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त करता है साथ ही साथ क्योंकि माता लक्ष्मी का अवतार मानी गई है देवी रुक्मिणी देवी.





भक्तों की उचित मनोकामना को पूर्ण करती हैं.

बात करेंगे अह इनकी पूजा विधि के बारे में और शुभ मुहूर्त के बारे में तो अष्टमी तिथि जो आ रही है वो आ रही है सोलह दिसंबर दो हजार बाईस को शुक्रवार को दिन शुक्रवार है, तो इसी दिन ही अह धनु संक्रांति मासिक कृष्ण जन्माष्टमी, कालाष्टमी भी इसी दिन ही है और साथ ही साथ बहुत बड़ा संयोग ये बन पड़ा है देखिए इतने सारे व्रत त्योहारों के साथ ही साथ अह ये की शुरुआत हो रही है और खरमास में प्रभु की भक्ति, उनकी आराधना, कथा, प्रवचन ये सब हम भरपूर मात्रा में सुन सकते हैं, करा सकते हैं.

प्रभु की भक्ति पा सकते हैं. अपने जीवन का जो एक महत्वपूर्ण पल है ये खरमास. जिसमें हम अपने जीवन के लिए संपन्नता और आर्थिक रूप से प्रबल होने की इच्छा और अपने भाग्य को प्रबल बनाने के लिए अग्रसर रहते हैं. प्रयास कर सकते हैं और तत्पर हमें रहना चाहिए.

खरमास के बारे में मैंने वैसे वीडियो पूरी बना रखी है मेरे यूट्यूब चैनल में तो वहां पे आप जा के इसको सुन लीजिएगा खरमास की वीडियो है इसमें हम बात करेंगे रुक्मिणी अष्टमी के बारे में ही तो सोलह तारीख को ये रुक्मिणी अष्टमी का जो व्रत है वो रखा जाएगा शुक्रवार के दिन बहुत ही माता लक्ष्मी का वार माना जाता है शुक्रवार और उसी दिन ही ये व्रत आ रहा है तो प्रभु श्री कृष्ण की साथ में आप पूजा करेंगे तो साथ में एक ये भी हो जाएगा कि माँ श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन ही का दिन है वो और साथ ही साथ सहयोग ये बना बन पड़ा है कि रुक्मिणी देवी की पूजा के साथ श्री कृष्ण भगवान जी की पूजा का भी विधान होता है तो ये सब कुछ एक ही उसमें आप मतलब सोने पे सुहागा वाला काम हो जाएगा.

पूजा मुहूर्त के बारे में बात करें तो जैसे कि बताया सोलह दिसंबर को सुबह एक बजकर उनतालीस मिनट से शुरुआत हो रही है जो पूजा मुहूर्त की तो सुबह ही एक बजकर उनतालीस मिनट से ये हो जाएगा आरंभ.

इसका जो समापन है वो सत्रह दिसंबर को तीन बजकर दो मिनट पर होगा. साथ ही अभिजीत मुहूर्त है बारह बजकर दो मिनट से बारह बजकर तैंतालीस मिनट तक तो काफी अ बहुत ही महत्वपूर्ण तिथियाँ बंद पड़ी हैं और सहयोग भी ऐसा बंद पड़ा है. बस ये है कि भक्ति और शक्ति का एक समावेश है जो कि हमें और हमारे जीवन को उज्जवल बनाने में सहायक होगा.

अब महत्व बताएं तो इनका महत्व क्या है? सबसे बड़ी बात तो महत्व में ये आती है कि माता लक्ष्मी जो है धन की देवी हैं और रुक्मिणी जी उनका अवतार हैं माता लक्ष्मी का तो अह रुक्मिणी माता का जो अह जो शरीर है उन पे लक्ष्मी माता के ही लक्षण दिखाई देते हैं और लोग इन्हें लक्ष्म स्वरूपा भी कहते हैं तो मान्यता यही है कि जो भी स्त्री या पुरुष और खासकर स्त्रियों के बारे में ये क्योंकि स्त्रियां जो है अगर माता रुक्मिणी देवी का व्रत रखती हैं और ये अष्टमी तिथि जो है माँ जगदंबे को अह उनकी पूजा अर्चना करने का एक बहुत बेहतरीन अह घड़ी होती है, शुभ तिथि होती है अष्टमी तिथि और माता को बहुत ही प्रिय है तो ये जो व्रत है उस दिन तो उसपे जो भी स्त्री ये करती है उनको कठिनाइयों उसका सामना करना नहीं पड़ता और अगर कठिनाइयाँ आ भी रही है तो माता का नाम लेने से उनकी भक्ति निरंतर करने से उनकी कठिनाइयाँ भी दूर हो जाती है और समस्याएँ जो पारिवारिक होती है या कुछ आर्थिक होती है वो सब धीरे-धीरे सही-सही होने लगता है तो मनोकामनाएं तो पूर्ण होती ही है माता तो मनोकामनाएं पूर्ण करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ती और ये सब विदित है आप सबको कि माँ की भक्ति से हमें क्या-क्या प्राप्त हो सकता है हमें वो चीज भी प्राप्त हो सकती है जो कि क्या कहते हैं हमारे लिए हमने सोचा भी नहीं होगा कि हमें इतना मिल जाएगा माँ पूरी झोलियाँ भर-भर के देती है तो माता रानी का आशीर्वाद हमेशा ही रहता है आप व्रत करते हैं नहीं करते वो अलग बात है मगर आप माता का नाम भी लेते हैं तो उससे भी काफी अह जीवन बहुत असर पड़ता है बहुत से कष्टों से निजात पाए जाते हैं। अब बात करते हैं पूजा विधि के बारे में तो ब्रह्म मुहूर्त में ही ये चालू ही हो रहा है अगर देखा जाए तो इसका एक बजकर एक बजकर उनतालीस मिनट से ये आरंभ हो रही है। वैसे अगर ये देखा जाए तो ब्रह्म मुहूर्त में आप स्नान वगैरह कर लें, उससे निवृत हो के अह जो भी आप इच्छित आपने वस्त्र धारण करना चाहते हैं, आभूषण भी अगर आप धारण कर लें, उस दिन तो बहुत अच्छा रहेगा। पूरा आभूषण साथ स्त्रियां अपना श्रृंगार करके इस व्रत को धारण करें इस दिन आप तुलसी माता को दे सकते हैं। तुलसी में माता लक्ष्मी जी का ही वास होता है, साथ ही साथ गंगाजल का छिड़काव कर आप चौकी स्थापित कर लें, उसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा लें। और भगवान गणेश की स्थापना सर्वप्रथम करेंगे। आप उसके बाद आप भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी की मूर्ति को स्थापित करेंगे, साथ ही शुद्ध से जल से भरा हुआ अह तांबे का जो है कलश वो आप अह रख सकते हैं अपने पास तांबे का ना हो, मिट्टी का हो कोई भी आप एक कलश आप रखें अपने साथ उसमें अह पत्ते जो होते हैं, अशोक के पत्ते मिल जाएंगे। आम के पत्ते बहुत ही ज्यादा शुभ माने जाते हैं, तो आम का पत्ता अगर आपको मिल जाता है, तो उस कलश में आप रखें उसको उसके साथ ही जब आप पूजा आरंभ करेंगे तो अह सबसे पहले भगवान गणेश जी का ध्यान करेंगे, उसके बाद ही आप भगवान श्री कृष्ण और माता रुक्मिणी जी देवी जी का अह ध्यान करेंगे, स्नान अभिषेक आप कर सकते हैं उनका फल-फूल, रोली-मोली चावल रखना बहुत ही जरूरी है उसमें चांदी का सिक्का हो आप डाल सकते हैं चावल के अंदर.

लौंग सुपारी जो भी आपके पास उपलब्ध हो धूप, दीप, चन्दन, अक्षत ये सब अर्पित करेंगे.

भगवान श्री कृष्ण को पीले वस्त्र बहुत पसंद हैं तो उनको वो चीज आप वही वस्त्र अर्पित करें.

उनसे ही श्रृंगार करें उनका. माता को लाल वस्त्र पसंद हैं उनको लाल वस्त्र से सज्जित करें.

जो भी है वो आप अर्पित कर सकते हैं.

करना भी चाहिए श्रृंगार आप ले सकते हैं बना-बनाया भी मिल जाता है.

व्रत की कथा सुने, आरती करें माता माता-पिता की साथ ही आप खीर का जो है वो भोग लगा सकते हैं, माता अह रुक्मिणी के इस व्रत में खीर का भोग अति उत्तम रहेगा, ये प्रसाद के रूप में आप वितरण कर सकते हैं पूरे घर में फिर जो दूसरा दिन होता है एक पारण समय कहते हैं जैसे कि एकादशी व्रत में होता है. उसी तरह का एक पारण होता है. उसमें आप गाय को सर्वप्रथम भोजन देने के बाद ही आप भोजन ग्रहण करें. दूसरे दिन की बात कह रहा हूँ मैं. तो इस तरह से माता रुक्मणी देवी का जो है व्रत किया जाता है और विधान इस तरह का है व्रत को रखने का.

तो मनोवांछित और उचित फल को हम प्राप्त कर जाएंगे और माता लक्ष्मी की कृपा हम पे सदैव बनी रहे इसी शुभकामनाओं के साथ इस वीडियो को यहीं विराम देंगे. अगर वीडियो आपको अच्छी लगती है आपने पूरी सुनते हैं वीडियो और पसंद है आपको ये सब. आं वीडियो हमारी तो बहुत-बहुत धन्यवाद. चैनल को आप सब्सक्राइब कर सकते हैं अगर चैनल पे नए हैं तो.