नवरात्रि की शुरुआत कैसे हुई, इसके बारे में दो पौराणिक कथाएं हैं। पहली कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले, रावण से युद्ध में जीत की कामना के साथ शक्ति की देवी भगवती मां की आराधना की थी। उन्होंने रामेश्वरम में नौ दिनों तक माता की पूजा-अर्चना की। श्रीराम की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उनको लंका में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था। जिसके बाद भगवान राम ने लंका नरेश रावण को युद्ध में हराकर उसका वध कर दिया और लंका पर विजय प्राप्त की। तब से इन नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं।
दूसरी कथा के अनुसार, नवरात्रि की शुरुआत भगवान शिव ने की थी। जब भगवान शिव ने पार्वती को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, तो उस दौरान उन्होंने नौ दिनों तक शक्ति की देवी की पूजा की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें पति के रूप में स्वीकार किया। तब से भगवान शिव ने भी नवरात्रि का पर्व मनाना शुरू किया।
नवरात्रि के नौ दिनों में, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों और उनके महत्व का वर्णन इस प्रकार है:
पहला दिन: शैलपुत्री
शैलपुत्री देवी दुर्गा का पहला रूप है। इनका जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ था। इनका वाहन नंदी बैल है।
दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी देवी दुर्गा का दूसरा रूप है। इनका व्रत और तपस्या करने के लिए जाना जाता है। इनका वाहन वृषभ है।
तीसरा दिन: चंद्रघंटा
चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप है। इनके माथे पर अर्ध चंद्र है। इनका वाहन सिंह है।
चौथा दिन: कुष्मांडा
कुष्मांडा देवी दुर्गा का चौथा रूप है। इनका स्वरूप बहुत ही सुंदर है। इनका वाहन सिंह है।
पांचवां दिन: स्कंदमाता
स्कंदमाता देवी दुर्गा का पांचवां रूप है। इनके पुत्र कार्तिकेय हैं। इनका वाहन सिंह है।
छठा दिन: कात्यायनी
कात्यायनी देवी दुर्गा का छठा रूप है। इनके पिता महर्षि कात्यायन हैं। इनका वाहन सिंह है।
सातवां दिन: कालरात्रि
कालरात्रि देवी दुर्गा का सातवां रूप है। इनका स्वरूप बहुत ही भयंकर है। इनका वाहन गर्दभ है।
आठवां दिन: महागौरी
महागौरी देवी दुर्गा का आठवां रूप है। इनका रंग बहुत ही काला है। इनका वाहन वृषभ है।
नौवां दिन: सिद्धिदात्री
सिद्धिदात्री देवी दुर्गा का नौवां रूप है। इनकी उपासना करने से सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनका वाहन सिंह है।
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कंचिका में कितने साल की कन्या चाहिए
कंचिका एक धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें नौ वर्ष तक की कन्या को माता दुर्गा का रूप माना जाता है। इस अनुष्ठान में कन्या को विशेष रूप से तैयार किया जाता है और उसे मां दुर्गा के रूप में सजाया जाता है। कंचिका अनुष्ठान को करने के लिए कन्या की उम्र कम से कम नौ साल होनी चाहिए।
इन कन्याओं को "कंचिक" कहा जाता है। कन्याओं को देवी दुर्गा का प्रतिनिधि माना जाता है और इनकी पूजा की जाती है। कंचिका में कन्याओं को भोजन, वस्त्र और उपहार दिए जाते हैं। कन्याओं को विदा करने के समय उन्हें दक्षिणा दी जाती है।
कंचिकी में कन्याओं को रखने के पीछे कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार, कन्याओं को रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है। दूसरी मान्यता के अनुसार, कन्याओं को रखने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
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