धोती पहनने का चलन अब बहुत हो गया है, इसे अब ब्राह्मणों तक ही सीमित माना जाता है। ज्यादातर भक्तों को कुर्ता पयजामा ही पहने देखा जाता है। क्या आप जानते हैं कि प्राचीन काल में पूजा के समय धोती पहनना कितना अनिवार्य माना जाता था? पहले यह मान्यता थी कि अगर आप धोती पहन कर पूजा नहीं करते हैं तो आपकी पूजा पूरी नहीं मानी जाएगी।
धोती को धर्म कांड के लिये पवित्र माना जाता था साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक महत्व भी छुपा हुआ है। पूजा करते वक्त काफी लंबे समय तक लेागों को बैठना पड़ता है, तो ऐसे में धोती से अच्छा और कुछ भी पहनने के लिये नहीं हो सकता।
आज कल लोग जींस और पैंट पहन कर ही पूजा करने के लिये बैठ जाते हैं हमारे शरीर के रक्तव्रवाह पर बुरा असर पड़ता है। धोती बारीक सूती कपड़े से बनी होती है जो कि सुविधाजनक होने के साथ ही हवादार भी होती है। एक और कारण ये भी है कि जनता में ज्ञान का अभाव है और वे ये नहीं जानते कि धोती पहनना क्यों अनिवार्य है या इसके क्या लाभ हैं।
अगर आप कभी साउथ इंडिया में गए होंगे तो वहां पर आपने हर पुरुष को घर में तथा बाहर भी केवल धोती पहने ही देखा होगा। मगर भारत के अन्य हिस्से की बात करें तो वहां पर लोगों के आंखों के सामने मानों जैसे फैशन का पर्दा पड़ा हुआ है।
शास्त्रों के अनुसार कहा गया है कि पूजा करते वक्त आपको पवित्र और साफ कपड़े पहनने चाहिये। और धोती एक बससे पवित्र कपड़ा है, जिसे आप एक दिन पहन कर अगले दिन के लिये आराम से धो कर फिर पहन सकते हैं। अज्ञानवश अधिक लोग पूजा कार्य में भी वर्तमान परिधान ही पहनते हैं। अपने परिधान पर हमे गर्व होना चाहिये, आखिर हमारे बुजुर्गों ने सोच समझकर ही इन्हे चुना होगा।